सोमवार, 15 दिसंबर 2008

दाग


समुन्दर में तूफानों को उठते हुए देखा,नदी तालों को भी उफनाते हुए देखा,अश्क से दामन को भिगोते हुए देखा,पर उस पर लगे दाग को मिटते नहीं देखा.जिंदगी को जिन्दादिली से जीते देखा,मौत को भी हंस कर गले लगाते देखा,जिंदगी से मौत की टकराहट देखा,पर जिंदगी व मौत को साथ निभाते नहीं देखा.दोस्त को दुश्मन के गले लगते देखा,पीठ में छुरा उन्हें भोंकते देखा,गम के अंधेरों में दोनों को सिसकते देखा,नदी के दो पाटों की तरह दिल को मिलते नहीं देखा.चाँद तारों को जमीन पर उतरते देखा,पंख परवाजों को आसमान को छूते देखा ,धरती में ही स्वर्ग कहीं बनते हुए देखा,अम्बर को धारा से मिलते नहीं देखा.हमने बचपन भी देखा पचपन भी देखा,बीती हुयी जिंदगानी देखा,बहती हुयी रवानी देखा,पर कहते हैं जिसे किस्मत उसको ही नहीं देखा.

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी पोस्ट लिखी है।बधाई।