रहेंगे हम,
घर में अपने ही मेहमान कब तकरखेंगे यूं बन्द ,
लोग अपनी जुबान कब तकफ़रेब छल,
झूठ आप रखिये सँभाल साहिबभरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तकचलीं हैं कैसी ये नफ़रतों की हवायें यारोबचे रहेंगे ये प्यार के यूं मचान कब तकहैं कर्ज सारे जहान का लेके बैठे हाकिमचुकाएगा होरी,
यार इनका लगान कब तकइमारतों पर इमारतें तो बनायी तूनेकरेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तकरही है आ विश्व-भ्रर से कितनी यहां पे पूंजीमगर रहेंगे लुटे-पिटे हम किसान कब तकरहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन करगवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तकदुकान खोले कफ़न की बैठा है 'श्यम' तो अबभला रखेगा 'वो' बन्द अपने मसान कब तकमफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा
रविवार, 21 दिसंबर 2008
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