शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

..तो भलमनसाहत में मारे गए अंग्रेज


'पहले आप, पहले आप' के चक्कर में कई लोगों की गाड़ी छूट जाने की कहानियां तो आपने सुनी होंगी। क्या शिष्ट व्यवहार के कारण जिंदगी और मौत की गाड़ी भी छूट सकती है? टाइटेनिक जहाज पर हुए एक शोध में इस बात का खुलासा किया गया है कि इस हादसे में ब्रिटेन के लोग अपनी भलमनसाहत के कारण ही ज्यादा अनुपात में मारे गए।

ब्रिटिश लोग हमेशा से ही अमेरिका के निवासियों की तुलना में खुद के ज्यादा अच्छे स्वभाव पर गर्व करते रहे हैं। लेकिन यही अच्छाई उनके लिए काल बन गई। यूनिवर्सिटी आफ ज्यूरिख के प्रोफेसर ब्रूनो फ्रे ने अपने शोध में दावा किया है कि 1912 में टाइटेनिक जहाज हादसे में मारे गए 225 ब्रिटिश नागरिक अपनी जान बचा सकते थे। दुर्घटना के समय ब्रिटिश नागरिक विनम्रता पूर्वक कतार में खड़े रहे जबकि अमेरिकी उन्हें धक्का देते हुए आगे आकर लाइफ बोट में सवार होकर अपनी जान बचाने में कामयाब हुए थे।

कभी न डूबने वाले जहाज के रूप में प्रचारित टाइटेनिक समुद्र में आइसबर्ग से टकराने के बाद डूबने लगा था। ब्रिटिश नागरिक ऐसी आपात स्थितियों में पहले महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने के नियम का पालन करने में लगे थे जबकि अमेरिकी लोग सबको धक्का देकर आगे निकल रहे थे।

प्रोफेसर फ्रे के अनुसार टाइटेनिक के डूबने के समय अंग्रेजों के पास बचने के ज्यादा मौके थे क्योंकि यह जहाज ब्रिटेन में बना था। यही नहीं, यह जहाज ब्रिटिश कंपनी का था और इसके चालक दल के सभी सदस्य भी हमवतन थे। फ्रे का मानना है कि इन कारणों के चलते ब्रिटिश यात्रियों का चालक दल से करीबी रिश्ता था। जाहिर है, उन लोगों को आसानी से लाइफ बोट मिल सकती थी।

प्रो फ्रे द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार 14 अप्रैल 1912 को टाइटेनिक की पहली और आखिरी यात्रा में हुई इस दुर्घटना में बचने वालों में दूसरे देशों के नागरिकों की तुलना में ब्रिटिश सबसे कम थे। स्विटजरलैंड और आस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं द्वारा आंकड़ों के आधार पर टाइटेनिक के यात्रियों और चालक दल के बचाव में आड़े आए कारकों के इस विश्लेषण में एक साल से ज्यादा का वक्त लगा।

टाइटेनिक में सवार सभी लोगों का 53 फीसदी केवल ब्रिटिश नागरिक थे जबकि बचाए गए 706 लोगों में इनका अनुपात बहुत कम था। बृहस्पतिवार को हुए इस खुलासे का पूरे अमेरिका में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार प्रो फ्रे का यह दावा अंग्रेजों को ऊंचा दिखाने का एक उदाहरण है। मैसाचुसेट स्थित टाइटैनिक हिस्टोरिकल सोसाइटी के करेन कम्युडा के अनुसार अंग्रेजों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे खुद को सुसंस्कृत और बाकी दुनिया को असभ्य समझते हैं। कम्युडा ने कहा कि शोध में किया गया दावा अंग्रेजों की नस्लवादी सोच का परिचायक है।

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

डरी हुई है धुप

कुछ अवसाद सा घुल रहा है मौसम में
धूप के साथ-साथ
धूप डरी हुई है
कुछ दिनों से

पहले धूप होती थी खिलंदड़ी
चाहे जहां आकर बैठ जाती थी
पक्की छत पर
छत की मुंडेर पर
कच्चे आंगन में, बरामदे में
पूरा घर और घर के बाहर
अपने आप उग आयी अयाचित घास पर

पहले धूप मांगती थी-
खुली खिड़की
खुला रोशनदान
हो सके तो छोटा सा कोई संद या मोखला
जब सबको था विश्वास
धूप नहीं छोड़ेगी साथ
मरते दम तक

पहले कोई नहीं करता था बात
धूप के बारे में
धूप भी नहीं चाहती थी करे कोई बात
उसके बारे में
जब धूप थी, हम थे
हम थे और हमारा संसार था
पर नहीं था कोई तो धूप और हम

पहले धूप बहुत गरम थी न ठंडी
बस गुनगुना करती थी तन को
तन पर पड़ी कमीज को
कमीज की जेब में रखे ठंडे प्रेम पत्र को
हम कभी खर्च नहीं करते थे बीस रुपया
कलेंडर को कि कब आएगा माघ-अगहन

डरी हुई धूप देखकर
फुसफुसा रहे हैं हम
हम जानते हैं लगातार समा रहा है
हमारे भीतर
डरी हुई धूप का डर
डर का अवसाद

हम समझ रहे हैं कि
डरी हुई है धूप
और डर बन रहा अवसाद
डर झांक रहा बार बार
मन से बाहर
जहां धूप इस तरह दिखती
कि केवल तन को गुनगुना करेगी
पर मन को भी गुनगुना कर देती थी

हाइवे पर खड़ी है धूप
और बेरियर पर टोल टैक्स मांगा जा रहा है उससे
जाने क्यों ठंडा हो गया है धूप का भेजा
pawan nishant

क्या है सत्यम कंप्यूटर्स की असली कहानी

सत्यम कंप्यूटर के चेयरमैन बी. रामलिंग राजू ने अपना इस्तीफा देते हुए कंपनी के निदेशक बोर्ड को एक लंबी चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने सत्यम के कामकाज के बारे में कई चौंकाने वाले खुलासे किये हैं। इसे एक तरह से राजू के गुनाहों का इकरारनामा कहा जा सकता है। रामलिंग राजू का ने इस पत्र में कहा है कि वास्तव में यह नकदी कंपनी के पास है ही नहीं। इसी तरह हाल के कारोबारी नतीजों में कंपनी की आमदनी, ऑपरेटिंग प्रॉफिट वगैरह के जो आंकड़े पेश किये गये थे, उनके बारे में भी कहा गया है कि इन आँकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया।
रामलिंग राजू ने निदेशक बोर्ड को जो पत्र लिखा है, उसका हिंदी रूपांतर पढ़ने के लिए
http://www.sharemanthan.in/index.php/the-news/489-ramalingarajuresignationletter पर क्लिक करें।

वीओआई राजस्थान हेड देवेंद्र सिंह तवंर बंपर जुतियाये गये

खबरिया चैनल वायस ऑफ इंडिया(वीओआई) के राजस्थान प्रमुख श्री पाल शक्तावत के बुधवार देर रात अपने पद से इस्तीफा दे देने के बाद गुलाबी नगरी जयपुर में माहौल गरमा गया है। आनन फानन में बुधवार रात को ही दिनेश गोस्वामी को वीओआई राजस्थान का ब्यूरो प्रमुख बनाया गया, लेकिन सूरज निकलते ही उन्होंने नई नौकरी से पीढ़ा छुड़ा लिया। महज 13 घंटे के अंदर देवेंद्र सिंह तंवर को वीओआई राजस्थान का नया मुखिया बनाया गया।
नये बॉस बनकर सुबह कार्यालय आते ही उन्होंने रिपोर्टरों से काम पर जाने को कहा। शक्तावत के इस्तीफे से भन्नाये रिपोर्टरों ने देवेंद्र तंवर को घुड़की दिखाने से बाज आने की सलाह देते हुए संयम बरतने को कहा, लेकिन नये बॉस को रिपोर्टरों की यह मुफ्त में दी गई सलाह रास न आई। जैसे ही उन्होंने रौब गाठना शुरू किया सभी रिपोर्टरों ने उनपर लात, घूंसो, चप्पलों, तमाचों, ठूंसों की बरसात कर दी।
करीब 10 मिनट तक बंद कमरे में ताबड़तोड़ मार खाने के बाद जैसे ही देवेंद्र सिंह तंवर बाहर आये तभी बकाया लेने आए बिजेंद्र सिंह उनसे टकरा गये। बकाया मांगने पर देवेंद्र ने उन्हें कार्यालय से बाहर जाने को कहा। जयपुर में तगड़ा भौकाल रखने वाले बिजेंद्र सिंह ने वहीं पर देवेंद्र तंवर को जुतियाना शुरू दिया।
उधर काफी देर से लत्तम घुच्चम देख रहे वीओआई के रिपोर्टर एक बार फिर देवेंद्र तंवर पर पिल गये। रिपोर्टरों ने पुनः जुतियाने पर देवेंद्र तंवर कई घंटो तक जयपुर की सड़कों पर कई किलोमीटर तक फटी जींस में नंगे पांव दौड़ते रहे।
वीओआई कार्यालय में रखा सामान लेनदार कंपनी के.डी.एस कंस्ट्रक्शन उठाकर ले गई और चैनल की 6 गाड़ियां बाकी बकायेदार उठा ले गये।

हाय गाफिल हम क्या करें.....??

भीड़ में तनहा...दिल बिचारा नन्हा...
साँस भी न ले सके,फिर क्या करे...??
सोचते हैं हम...रात और दिन ही ये.....
ये करें कि वो करें,हम क्या करें...??
रात को तो रात चुपचाप होती है....
इस चुप्पी को कैसे तोडें,क्या करें...??
दिन को तपती धुप में,हर मोड़ पर...
कितने चौराहे खड़े हैं हम क्या करें??
सामना होते ही उनसे हाय-हाय....
साँस रुक-रुक सी जाए है,क्या करें??
कित्ता तनहा सीने में ये दिल अकेला
इसको कोई जाए मिल,कि क्या करें??
जुस्तजू ख़ुद की है"गाफिल",ढूंढे क्या
ख़ुद को गर मिल जाएँ हम तो क्या करें??

शनिवार, 3 जनवरी 2009

हिट काउंटर

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सच कड़वा लगता हो तो ...

यदि सच कड़वा लगता होतो
पढ़ना बंद कर दो
जिंदगी की किताब...बात
उस समय की है
जब समय नहीं हुआ करता था
सब कुछ पैदा हो गया था
तुम पैदा हो गये थे
बस............ समय नहीं।
...अब भी बहुत समय तक
पैदाइश के ....बहुत बाद तक
बहुत से लोगों का
समय पैदा नहीं होता

पाकिस्तान किससे मानेगा - कूटनीति से या कूटने की निति से

आतंक की छावं मे देश चलता रहे और इसके सिवा हम कर ही क्या सकते है । पहली जनवरी का असम मे हुआ धमाका हैप्पी न्यू इयर के शोर मे दब गया । यदि यह धमाका दिल्ली या मुंबई मे होता तो इसकी आवाज़ ज्यादा सुनाई पड़ती । हम और हमारे हुक्मरानों को केवल एक बात आती है आतंक पाकिस्तान प्रयोजित है और पाकिस्तान कड़ी कार्यवाही करे । चोर से चोकीदारी की आशा कही न कही हमारी कायरता की ओर इशारा तो करती ही है । हम कूटनीति कर रहे है वही कूटनीति जो पचासवे दशक में पंडित नेहरू ने कश्मीर के लिए की थी ।हमारा पड़ोसी पकिस्तान कूटनीति नही कूटने की नीति ज्यादा समझेगा ऐसा मुझे ही नही आप को भी विश्वास होगा । यह तो है हमारा सियापा । अब थोडी सी चर्चा एक छोटे से देश की, नाम है उसका इस्रायल मुट्ठी भर लोग और होसला दुनिया से टकराने का । आतंकी खुराफातों से परेशान हो आर पार की लडाई शुरू कर चुका है । हमास को नेस्तनाबूद करने के लिए संघर्ष जारी और उनके मंत्री का बयाँ उनकी इच्छा शक्ति को दर्शाता है । इस्राइल का यह हमला मुंबई हमले मे मरे अपने इस्रायलियो के लिए एक श्रीध्न्जली भी है ऐसा लगता है ।और हम कूटनीति प्रयास कर रहे है अपने अंकल सेम की ओर देख रहे है आंटी राईस पकिस्तान को समझाने आ चुकी है २० जनवरी के बाद यही काम हिलेरी आंटी करेंगी । हमारे भारत के नेता खुश है की कूटनीति कर रहे है और हम भारत के वासी चाह रहे है की पाकिस्तान के लिए कूटने की नीति होनी चाहिए ।

मीडिया न्यूज़

- राज में एक त्रिवेदी और मिश्रा मिलकर जबरदस्त राजनितिक कर रहे है । हाल ही में जबलपुर के इंचार्ज से झगरा होनेके बाद जबलपुर इंचार्ज को त्रिवेदी ने रीजनल में भेज दिया है । इन दोनों के कारण एक बार फिर
राज का माहोल खराब हो गया है । त्रिवेदी और मिश्रा ने मालिक के वफादार कीर्ति सक्सेना को पहले ही रीजनल ka rasta dekha chuka hai.
- भास्कर फिर से एक महीने बाद रिपोर्टर की भरती करेगा ।